Bhool Chuk Maaf Review में सबसे पहली बात जो ध्यान खींचती है, वो है इसका अनोखा कांसेप्ट। फिल्म एक टाइम लूप की कहानी कहती है, जिसमें एक दूल्हे की बारात बार-बार उसी दिन में फंस जाती है। हर दिन 29 तारीख ही आती है, 30 तारीख कभी नहीं आती। शादी के कार्ड में भले ही तारीख छपी हो, लेकिन जिंदगी में वो दिन आता ही नहीं।
Bhool Chuk Maaf Movie के कहानी की शुरुवात
कहानी बनारस की गलियों से शुरू होती है, जहां एक लड़का अपनी प्रेमिका से शादी करना चाहता है। लड़की राज़ी है, लेकिन उसके पिता की एक शर्त है—सरकारी नौकरी। शादी तभी होगी जब लड़के के पास सरकारी नौकरी की रसीद हो। तभी कहानी में एक मोड़ आता है—लड़का महादेव के मंदिर पहुंचता है, मन्नत मांगता है, और भोलेनाथ बिना कुछ सोचे-समझे वरदान दे देते हैं।
भोलेनाथ का वरदान और टाइम लूप की उलझन
भगवान शिव को ‘भोला’ यूं ही नहीं कहा जाता। वे न भेदभाव करते हैं, न ही भक्त की जात या नियत देखते हैं। जो मांग लिया, वही दे दिया। फिल्म में भी यही हुआ। लेकिन वरदान ऐसा निकला, जिसने पूरी कहानी को उलझा दिया। अब लड़का हर दिन वही हल्दी, वही तैयारी, वही उत्साह के साथ उठता है और अगली सुबह फिर से 29 तारीख में लौट आता है।
यह टाइम लूप दर्शकों के लिए सोचने का नया विषय बनता है। सवाल उठता है—क्या हम अपनी किस्मत को बदल सकते हैं, या किस्मत ही हमें बदलने आती है?

फिल्म का पॉजिटिव हिस्सा: नया आइडिया, पारिवारिक अपील
Bhool Chuk Maaf review करते समय यह ज़रूर कहना पड़ेगा कि फिल्म का विचार नया और साहसी है। पारंपरिक रोमांस से हटकर इसमें टाइम लूप, महादेव के दर्शन और गीता से जुड़े दर्शन को जोड़ने की कोशिश की गई है। यह एक ऐसी फिल्म है जिसे पूरे परिवार के साथ देखा जा सकता है। खास बात ये है कि फिल्म जटिल नहीं है, हर उम्र के दर्शक इसे आसानी से समझ सकते हैं।
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कमज़ोरियां जो फिल्म को खींच ले गईं पीछे
जहां कहानी का आधार दमदार है, वहीं फिल्म का निर्देशन और लेखन उस स्तर तक नहीं पहुंच पाए। डायलॉग्स में कॉमेडी की कमी है, और गाने दर्शकों के मन में असर नहीं छोड़ते। फिल्म की गति धीमी है, जिससे कई बार कहानी खिंचती हुई लगती है।
राजकुमार राव की एक्टिंग मिडिल क्लास किरदारों में हमेशा की तरह सहज लगती है, लेकिन अब एक जैसे रोल्स में उन्हें देखना दोहराव सा लगता है। वहीं वामिका का अभिनय थोड़ा ओवर हो जाता है, जो कुछ सीन को बनावटी बना देता है। दोनों के बीच के संवाद कई बार फिल्म को धीमा कर देते हैं।
क्लाइमेक्स तक पहुंचने में देर, लेकिन सोचने पर मजबूर करता है
फिल्म का क्लाइमेक्स दर्शकों को सोचने पर मजबूर कर देता है। यह दिखाता है कि सिर्फ वरदान मांगना काफी नहीं, उसे संभालने की जिम्मेदारी भी जरूरी है। Bhool Chuk Maaf review में यह जरूर कह सकते हैं कि कहानी का अंत फिल्म को एक सोचने वाली दिशा में ले जाता है।
कुल मिलाकर—वन टाइम वॉच फिल्म
अगर आप परिवार के साथ बैठकर कोई साधारण लेकिन अलग कहानी देखना चाहते हैं, तो यह फिल्म एक अच्छा विकल्प है। ना तो यह कोई मास्टरपीस है, और ना ही कचरा। यह एक सिंपल, वन टाइम वॉच फिल्म है जो कुछ नया ट्राई करती है। और यही इसकी सबसे बड़ी ताकत है।
डिस्क्लेमर: उपरोक्त Bhool Chuk Maaf movie review पूरी तरह से हमारे निजी विचारों और विश्लेषण पर आधारित है। हमने इस फिल्म को अपने नजरिए, समझ और अनुभव के आधार पर आंका है। यह जरूरी नहीं कि हर दर्शक की राय या पसंद हमारे विचारों से मेल खाए। हर व्यक्ति की पसंद, सोचने का तरीका और फिल्मों को देखने का नजरिया अलग होता है।
हमारा उद्देश्य सिर्फ एक सामान्य मार्गदर्शन देना है, न कि किसी की राय को प्रभावित करना। इसलिए हम सभी पाठकों से अनुरोध करते हैं कि वे इस फिल्म को लेकर अपना निर्णय स्वयं लें। यदि आपको इसका ट्रेलर, थीम या कहानी दिलचस्प लगती है, तो जरूर इसे देखें और अपनी राय बनाएं। सिनेमा एक व्यक्तिगत अनुभव है और हर किसी के लिए उसका प्रभाव अलग हो सकता है।
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